वृक्षों पर छाये नव-पल्लव।
हर एक हृदय में मचा है विप्लव।
छाया है कैसा यह उत्सव।
झूम रहे हैं दिग-दिगंत।
देखो आया आया वसंत।
हृदयों से धुल गए अवसाद।
सजे हुए सारे प्रासाद।
सूर्य भी देता आशिर्वाद।
ब्रम्हांड में गूंजे स्वर अनंत।
देखो आया आया वसंत।
हार्षोल्लासित हैं सारी गलियां।
खिलने को आतुर सब कलियां।
आपस में करतीं रंग-रलियां।
भीषण गर्मी का हुआ अंत।
देखो आया आया वसंत।
Friday, September 28, 2007
वसंत
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
वाहSSSS बहुत ही सुंदर कविता वसंत के बीत जाने के उपरांत भी यह उतनी ही ताजा लग रही है…।
Post a Comment