कोल्हू के पाटों के बीच जिस तरह फंस,
कर निकल जाता है गन्ने का रस,
बस
उसी तरह समय के पाट भी चूस
लेते हैं आदमी का जूस,
और निचोड़ लेते है,
उसकी नस-नस।
Thursday, October 11, 2007
समय के पाट
लेखक:- विकास परिहार at 02:09
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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1 comment:
सही है. :)
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