Saturday, October 20, 2007

ज़िन्दगी से मेरा करीब का नाता है

ज़िन्दगी से मेरा करीब का नाता है।
अब भी तेरा हंसता चेहरा मुझे याद आता है।

है झनक तेरी बोली में ऐसी,
जैसे कोई साज़ गुनगुनाता है।

गम तो हैं नैमतें खुदाई की,
इनको क्यों यह जहाँ भुलाता है।

कौन सुनता है दुःख को गैरों के,
कौन अपनों को आज़माता है।

यह तो मिलते ही हैं मुहब्बत में,
ज़ख्म तू क्यों भला छिपाता है।

उसका अल्हड़ हसीन सा चेहरा,
अब भी हमें देख मुस्कुराता है।

मेरे गम की उदास बस्ती में,
मौत का भी दिल पसीज जाता है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन, विकास. बढ़िया लिखा जा रहा है.

© Vikas Parihar | vikas