स्वर्थ सिद्धी में मग्न।
आज शब्द हुए नग्न।
लज्जा को तज।
हम निर्लज्ज।
खींसे निपोरते झांकते हैं।
एक दूजे की नग्नता को ताकते हैं।
Tuesday, October 2, 2007
नग्नता
लेखक:- विकास परिहार at 12:35
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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1 comment:
अरे वाह विकास भाई, आपकी क्षणिका ने तो गंभीर बात कह दी ।
धन्यवाद बेहतर शव्द संयोजन व भाव के लिए ।
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