एक सुबह जब नींद टूटी,
तो पाया ख़ुद को एक अलग जगह,
था सब कुछ परिवर्तित...........
सीढियां चढ़ते हुए,
किया एक बार
पुनर्विचार,
तभी,
छत की दुखी चादर थरथराती है,
वेदना की अनुभूति से
या,
एक इंसान चाहता है मुक्ति.
Wednesday, January 9, 2008
एक सुबह
लेखक:- विकास परिहार at 14:36
श्रेणी:- नया प्रयोग
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