Wednesday, January 9, 2008

एक सुबह

एक सुबह जब नींद टूटी,
तो पाया ख़ुद को एक अलग जगह,
था सब कुछ परिवर्तित...........
सीढियां चढ़ते हुए,
किया एक बार
पुनर्विचार,
तभी,
छत की दुखी चादर थरथराती है,
वेदना की अनुभूति से
या,
एक इंसान चाहता है मुक्ति.

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© Vikas Parihar | vikas