क्या होता संगीत मौन में पूछ रहे क्या कोलाहल से।
समय ने जो भी घाव दिए हैं कहां धुले हैं वो दृगजल से।
अपने मन में हमने हरदम बैर-भाव ही तो पाले हैं।
फूट रहे हैं जो इस जग में वो अपने ही तो छाले हैं।
देख के स्थिति इस जग की पीड़ाएं मन में उठती हैं।
सकल हृदय की अवगुंठन में वे आपस में ही गुथती हैं।
कैसे होता है छल जग में कैसे पूछें इक निश्छल से।
मृत्यु है तृप्ति जीवन की,जीवन है अतृप्त पिपासा।
पल-प्रतिपल बढ़ती जाती हैं मानव जीवन की अभिलाषा।
ऐसा कौन मनुज इस जग में जिसने दुःख को न पाया हो।
कौन है जो सुख तो लाया हो पर पीड़ाएं न लाया हो।
कहां रही है दूर सफलता मानव इच्छा के भुजबल से।
Sunday, May 11, 2008
मौन और संगीत
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1 comment:
अच्छा है. लिखते रहो.
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