Monday, September 10, 2007

प्रेम

वासना का नाम नहीं है प्रेम
सभी के बस का काम नहीं है प्रेम
प्रेम है पुत्र का अभिभावक से
हिरन का अपने शावक से
राही का प्रेम जिस तरह मंज़िल
प्रेमी का जिस तरह से दिल
प्रेम है साधक का अपने साध्य से
प्रेम है एक कवि का अपने काव्य से
इसकी परिभाषा में तो बस ये शब्द ही पर्याप्त है
क्योंकि प्रेम तो कण-कण में व्याप्त है।

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© Vikas Parihar | vikas