वासना का नाम नहीं है प्रेम
सभी के बस का काम नहीं है प्रेम
प्रेम है पुत्र का अभिभावक से
हिरन का अपने शावक से
राही का प्रेम जिस तरह मंज़िल
प्रेमी का जिस तरह से दिल
प्रेम है साधक का अपने साध्य से
प्रेम है एक कवि का अपने काव्य से
इसकी परिभाषा में तो बस ये शब्द ही पर्याप्त है
क्योंकि प्रेम तो कण-कण में व्याप्त है।
Monday, September 10, 2007
प्रेम
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