Tuesday, September 11, 2007

तुम....

शाम की ढलती हुई लालिमा सी तुम।
गर्म मौसम में हो ठंडी हवा सी तुम।
तुम्हारी इन आंखों ने मुझको प्यार क्या है सिखा दिया,
मेरे पहले प्यार की पहली छटा सी तुम।
तुम ही जीने की कला हो, तुम ही साधक साधना,
तुम ही तो आराध्य हो आराधना सी तुम।
तुम ही प्रश्न, तुम ही उत्तर, तुम ही साहिल, तुम ही सागर,
और मेरे काव्य की आत्मा सी तुम।

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© Vikas Parihar | vikas