जीवन में एक अपरिचित सा सूनापन।
असीमित इच्छाएं सीमित साधन।
आगे बढना चाहें फ़िर क्यों,
कदमों को रोकते लौकिक बंधन।
जीवन को परिभाषित करता,
मृत्यु से जीवित होता जीवन।
साधना के चक्रव्यूह में,
साधक खुद बन जाता साधन।
Tuesday, September 11, 2007
अन्तर्द्वंद
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