Tuesday, September 11, 2007

ध्येय

चलना है मुझको जलते अंगारों पर।
चट्तानों से टकराती ज्वार की धारों पर।
नहीं लिखा फ़िर भी मुझको विश्वास है,
लिखूंगा इतिहास मैं चांद सितारों पर।
होंगे वे कोई और जो ना कूदें सागर में,
मैं वो नहीं जो बैठा रहूं किनारों पर।
चाहे मंज़िल-पथ में आयें कितनी ही दीवारें,
मैं तराश दूंगा मंज़िल दीवारों पर।

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© Vikas Parihar | vikas