Thursday, September 13, 2007

वर्तमान

इस जीवन से मौत भली है।
जिसमें मरता मन हर एक पल।
हृदय में हर एक बसा हुआ छल।
जहाँ पर पैसों में बिकता जल।
जहाँ मनुष्यों से महगा कल।
जहाँ पर कुचली हर एक कली है।
इस जीवन से मौत भली है।
जगत विरक्ति चाहे यह मन।
हर रिश्ता है स्वार्थ का बंधन।
हर पल अश्रुपूरित आँखें।
पाप से झुकी जीवन शाखें।
ढलने अब सच की सांझ चली है।
इस जीवन से मौत भली है।

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© Vikas Parihar | vikas