मना रहे हैं देखो हम सब हिन्दी के पखवाङे को।
मन में प्रेम नहीं है फ़िर भी पीटें प्रेम नगाङे को।
मेरा प्रेम गुलाम नहीं है किसी तरह अभिव्यक्ति का।
मुझको पूरा बोध है अपनी मातृभाषा की शक्ति का।
अंग्रेजी को अपनाया हमने हिन्दी से मुख मोङ लिया।
दूजे की माँ का आँचल पकङा अपनी माँ का छोङ दिया।
भारत में भी ऐसे आते हिन्दी पख्वाङा मनाने को।
जैसे दीपक लेकर निकले हम रवि को पथ दिखलाने को।
अंग्रेजी भाषा के हिमायती हिन्दी को दुत्कारे हैं।
हम हरदम ग़ैरों से जीते पर अपनों से हारे हैं।
भारत की पहचान है नीरज और बच्चन की हाला से।
हम अब भी पहचाने जाते दिनकर, पंत, निराला से।
आज मेरे इस चिट्ठे का अभिप्राय तभी सफ़ल होगा।
जब हिन्दी को अपनाने का निश्चय सब का अटल होगा।
आओ हम सब यह प्रण कर लें हम हिन्दी को अपनायेंगे।
अपनी राष्ट्र भाषा को एक दिन विश्व स्तर पर लाएँगे।
थोङा सा मैं उत्तेजित हूं थोङा सा अभिलाषी हूँ।
पर मैं गर्व से कहता हूँ कि मैं हिन्दीभाषी हूँ।
* हिन्दी दिवस एवं पखवाङे पर विशेष
Friday, September 14, 2007
हिन्दी पखवाङा*
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