एक शाम चिट्ठानंद महाराज ने अपने चेले को बुला कर कि चेले बहुत दिनों से मैने कहीं भ्रमण नहीं किया। कई दिनों से तो इस कुटिया से बाहर भी नहीं निकला, पर तुम तो आया जाया करते हो तो अब तुम ही बताओ कि देश दुनिया में क्या चल रहा है? स्वामी जी की इस बात पर चेले ने देश दुनिया की खबर देना आरंभ किया। वह बोला, महाराज जहाँ तक दुनिया की खबर की बात है तो दुनिया में शांति है। अमेरिक अभी अपने नये शिकार की तलाश कर रहा है। चीन को तो बस अपने व्यापार से ही मतलब है और आज कल वह अपने व्यापार का विस्तार करने में ही व्यस्त है। और रही बात भारत की तो भारत में भी सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा है। बस महिलायें असुरक्षित हैं। अपराध पहले से बहुत अधिक हो गये हैं। लोगों की परेशानियां ज़्यदा हो गयी हैं। भ्रष्टाचार ने अपने पैर पूरी तरह से फ़ैला लिये हैं। संविधान के चारों स्तंभों को भी भ्रष्टाचार की घुन लग गयी है। चौथा और सबसे अधिक विश्वसनीय माने जाने वाले मीडिया एक मंडी की तरह हो गया है। वह अब बस टी.आर.पी. बढ़ाने में ही लगा रहता है। राष्ट्रभाषा को एक तरह से देश से बाहर कर दिया गया है। संतोष आजकल एक विलुप्त प्राणी हो गया है। परंतु फ़िर भी लोग हँसते हैं, खेलते हैं, और तथाकथित रूप से अपने जीवन का भरपूर आनंद उठा रहे हैं क्यो कि लोगों ने उत्तेजित होना बंद कर दिया है। उनके अंदर से स्वयं का बोध समाप्त हो गया है। पर सब कुछ ठीक है। इतना सुन कर चिट्ठानंद जी ने अपने कानों पर हाँथ रख लिये और चेले को कहा, “अब बस करो! अब इसके आगे सुनना मेरे लिये असहनीय है।
Saturday, September 15, 2007
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1 comment:
अब बस करो! अब इसके आगे सुनना मेरे लिये असहनीय है।
:)
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