Saturday, September 15, 2007

हेनरिक इब्सन का मास्टर बिल्डर

सफ़लता के चरम पर एक इन्सान अपने आप को कितना असुरक्षित महसूस करता है हेनरिक इब्सन का नाटक मास्टर बिल्डर इसी बात को बयान करता है। नोर्वे में जन्मे इब्सन को शेक्सपियर के बाद दूसरा महानतम नाटककार माना जाता है। उनके द्वारा लिखा गया यह नाटक एक ऐसे इन्सान की कहानी है जो अपने दिमाग़, मेहनत और लगन के बल पर आपने आप को एक सफ़ल व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है। हालांकि अपने को इस स्तर पर लाने के लिये वह अपने व्यक्तिगत जीवन एवं सुखों को दांव पर लगा देता है। यहां तक कि जिस व्यक्ति के यहां से वह अपनी शुरुआत करता है बाद में उसी की जङें काट देता है। इस कहानी का मुख्य पात्र मास्टर बिल्डर यह जानता है कि उसने यह गलत किया है और यही अपराधबोध उसे अंदर हि अंदर खाता जाता है और उसे भयभीत करता जाता है कि जैसा उसने किया वैसा उसके साथ भी कोई कर सकता है। इसीलिये वह हमेशा युवा पीढी से डरा हुआ सा रहता है। युवा पीढी हमेशा उसे उसकी असुरक्षा का अनुभव कराती रहती है। जहां एक ओर इब्सन सफ़लता के चरम पर पहुंचे इंसान के अंर्तद्वंदो एवं अंर्तमन की गहराइयों को मथने की कोशिश करते हैं वहीं दूसरी ओर इस नाटक में दो स्त्री पात्रों के माध्यम से इब्सन ने दो अलग-अलग मानसिकताओं का चित्रण किया है। एक ओर है मस्टर बिल्डर सोलोनेस की पत्नी आलीने सोलोनेस और दूसरी ओर है हिल्दे वांगेल। जहां एक ओर हिल्दे वांगेल एक ऐसी युवा पीढी का प्रतिनिधित्व करती है जो अपना अधिकतर समय स्वप्न और रोमांच में ही बिताने का प्रयास करती है वहीं दूसरी ओर है आलीने सोलोनेस जो इस सोच का प्रतिनिधित्व करती है कि दुनिया की बङी से बङी क्षति भी इतनी बङी नहीं हो सकती कि उसके आगे जीवन ही छोटा पङ जाये। वह एक भयंकर हादसे में लगभग अपना सब कुछ खो जाने के बाद जिये जा रहे जीवन की एक गरिमामय झलक प्रस्तुत करती है। यह हादसा भी एक तरह से उसके पति की महत्वाकांक्षा की बदौलत ही घटता है और एक ही झतके में उसका सब कुछ छीन लेता है। आलीने सोलोनेस के ही शब्दों में वह सिर्फ़ इसीलिये जी रही है क्यों कि यह उसका “फ़र्ज़” है। इस नाटक में प्रेम का एक विचित्र एवं अलग ही रूप देखने को मिलता है चाहे वह मास्टर बिल्डर सोलोनेस हो या आलीने सोलोनेस या फ़िर हिल्दे वांगेल का हो या फ़ोस्ली इंगनार या फ़िर क्नूत ब्रोदिक का।
शायद यह नाटक आज के इस भौतिकवादी युग में लोगों को प्रेरित कर सके कि “ईश्वर के लिये गिरिजाघर बनाने से ज़्यादा सार्थकता आम लोगों के लिये घर बनाने में है।”

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© Vikas Parihar | vikas