जीवन में अगणित आभाव।
नयनों में करुणा के भाव।
चक्रव्यूह में फ़ंसा है जीवन,
फ़िर भी जीने का है चाव।
छिन्न-भिन्न सी हालत में है,
अगणित छेद हुये हैं इसमें,
कौन है नाविक इस नैया का,
किसकी है यह नाव?
मेरा मन असमंजस में है,
सोच नहीं पाता है पल को,
तन की सुंदरता देखूं,
या देखूं मन के घाव।
*यह कविता राजस्थान राज्य के सूरतगढ़ कस्बे की एक ग्रामीण स्त्री को समर्पित है।
Thursday, September 13, 2007
सुंदरता और घाव*
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