Sunday, September 30, 2007

पतझड़ और वासंती गीत

जब पतझड़ मुझको प्यारा है वासंती गीत लिखूं कैसे।
जिसने मेरा दिल तोड़ दिया मैं उसको मीत लिखूं कैसे।
देख कर हालत देश की इस आज कोयलिया भी रोए,
तुम ही बोलो इस क्रंदन को मैं संगीत लिखूं कैसे।
जिस जीत के खातिर सब हारा, सारे जग-बन्धन तोड़ दिए,
जीत तो गया पर मैं इसको अपनी जीत लिखूं कैसे।
आज सफलता की चोटी पर खड़ा अकेला मैं हर दम,
पर इस तन्हाई से मैं हूं कितना भयभीत लिखूं कैसे।

2 comments:

अनिल रघुराज said...

विकास जी, इसी द्वंद्व से भाव प्रबल होते हैं, सौंदर्यानुभूति उभरती है, सुंदर कविता बनती है। अच्छा लिखते हैं। दुष्यंत की कविता वाली पोस्ट भी दिलचस्प है।

Mike West said...

You seem very uncertain

© Vikas Parihar | vikas