कल-कल करती बहती है तरिणी निर्झर।
रख मन में अदम्य साहस विश्वास प्रखर।
पथ की कठिनाई का उस पर नहीं असर।
उसे चाहिए केवल साथ तटों का,
गर ना दें वो साथ, जाएगी नदी बिखर।
सरिता का जीवन नारी जीवन सम।
उदगम स्थल में चंचल ज्यों हो बचपन।
मध्यम में आता उसमें योवन का अल्हड़पन।
अंत में जीती शांत चित्त स्थिर जीवन।
और समाहित हो जाती खुद सागर में,
कर देती सागर का अस्तित्व अमर।
Sunday, September 30, 2007
तरिणी
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1 comment:
अरे वाह, बड़ी दूर दूर तक नाम फैल गया है. आपकी कवितायें अन्य भाषाओं में भी पढ़ी जा रहीं है जो उपरोक्त माननीय CresceNet जी की टिप्पणी से सिद्ध हो रहा है. बहुत बधाई.. हा हा!!!!
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