Sunday, September 23, 2007

राजनीति

कभी चारा घोटाला देती है।
तो कभी हवाला देती है।
लोगों को वोटों के खातिर,
नोटों की माला देती है।
ना कहे कोई, है दाल में काला,
रंग दाल का काला देती है।
झूठ को घर में रख कर,
सच को देश निकाला देती है।
जिनको ना मिला हो अन्न कभी,
उन्हें मधुरस का प्याला देती है।
जिसका पानी बदबू मारे,
यह वो नाला देती है।
जिसमें फंस कर ना निकल सको,
राजनीति वो जाला देती है।

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© Vikas Parihar | vikas