लहलहाते खेत पर।
चमचमाती रेत पर।
दो कदम बढते चले।
इतिहास को गढ़ते चले।
अटकलें आईं कई।
बदलियाँ छायीं कई।
पर ना हुआ भयभीत वो।
अटकलों को जीत वो।
बढ़ रहे थे अपने पथ पर।
रवि के सप्तश्व रथ पर।
तभी अचानक उन कदमों के,
सामने पड़ा सागर एक।
ठिठक गया वह उसको देख।
सागर में था ज्वार अपार।
मुश्किल था जाना उस पार।
फिर भी वह उससे ना घबराया।
अपने साहस को पुनः जुटाया।
और सागर में कूद गया वह।
ज्वार धार से जूझ गया वह।
अंत में सागर पार हुआ वो।
मंज़िल मिल गयी उसकी उसको।
इससे समझ में यह आता है।
जो विपदाओं से लड़ जाता है।
और कर्म पथ पर बढ़ जाता है।
वह ही मंज़िल को पाता है।
Monday, September 24, 2007
सफलता
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