Saturday, September 22, 2007

हिंदी दिवस

“इनसे मिलिये, ये हैं मिस्टर अनिमेष, अंग्रेज़ी पर इनकी बहुत अच्छी पकङ है” मेरे बगल में बैठे व्यक्ति,जिनका नाम राकेश था, ने हाल ही में आए व्यक्ति का परिचय अपने साथी से करवाते हुये कहा।
“हलो, आई एम संजीव” दूसरे व्यक्ति ने भी अंग्रेज़ी में अपना परिचय देते हुये अपने आप को बेहद गौर्वान्वित महसूस किया।
“ग्लेड टु मीट यू। बाय द वे व्हेयर डू यू वर्क?” अनिमेष ने संजीव से पूछा।
“प्रेज़ेंट्ली आई एम वर्किंग विथ एयरटेल। व्हाट अबाउट यू?” संजीव ने जवाब देने के साथ एक प्रश्न और दाग दिया।
“आई एम दि एरिया मेनेजर इन महिंद्रा” अनिमेष ने जवाब दिया।
उन लोगों के चेहरों को देख कर लग रहा था जैसे कि वे लोग इस वार्तालाप को एक तरीके से झेल रहे हैं पर फ़िर भी अंग्रेज़ी में बात कर के एक दूसरे पर अपना अधिक से अधिक प्रभाव डालना चाहते हैं।
तो बातचीत इसी तरह आगे बढ़ती रही। तभी अनिमेष ने संजीव से पूछा “व्हाट डू यू थिंक अबाउट दि स्कोप ओफ़ हिन्दी इन इंडिया?”
आई थिंक देयर इज़ नो च्कोप ओफ़ हिन्दी इन फ़्यूचर। इफ़ इंडिया वांट्स टु प्रोग्रेस देन वी मस्ट एम्फेसाइज़ ओन इंग्लिश। आफ़्टर आल इंग्लिश इज़ दि ग्लोबल लेंग्वेज एंड दिस इज़ दि टाइम ओफ़ ग्लोबलाइज़ेशन।” संजीव अंग्रेज़ी के समर्थन में अपने ये उत्कृष्ट विचार प्रस्तुत कर के अपने को औरों से बहुत उच्चवर्गीय मान रहा था।
संजीव के इस वक्तव्य को सुन कर अनिमेष ने भी उसके समर्थन में अपना सर हिला दिय और कहा “आई एग्री विथ यू।”
यह कह कर अनिमेष ने अपनी जेब से एक पुङिया निकाली और संजीव की तरफ़ बढ़ा कर बोला “वुड यू लाइक टु हेव अ पान?”
संजीव ने अपना सर नकारात्मक मुद्रा में हिला दिया।
मैं इतनी देर से इन लोगों के अंग्रेजी बखान को चुप-चाप सुन रहा था। अनिमेष ने पान खाया और कागज़ को वहीं ट्रेन में फ़ेंक दिया। तभी मेरी नज़र उस कगज़ पर गयी। वह एक अखबार का टुकङा था जिस पर लिखा हुआ था “हिंदी दिवस की सभी को शुभ कामनायें”

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

क्या मिलिए ऐसे लोगों से ........

© Vikas Parihar | vikas