Friday, September 28, 2007

जीवन

प्रखंड प्रचंड प्रज्वलित तेज।
जीवन है शूलों की सेज़।
पथिक नहीं बदला पर,
बदले नित नये नाम।
तेज़ हवा के झोकों में,
चलना जीवन का काम।
अलसाए से दिन सारे,
और है सोई हुई निशा।
पथ सारे भूले अपना पथ,
दिशा भ्रष्ट हर एक दिशा।
सारे शब्द हुये नीरव, और
वीणा के सब स्वर छूटे।
नींद खुली तो देखा फर्श पर,
थे सारे सपने टूटे।
टूटे सपनों की अब तो बस,
माला बुनता रहता हूं।
हर पल अपने व्यथित हृदय की,
धड़कन सुनता रहता हूं।
कभी दया कर इस जीवन पर,
और वसंत को भेज।
प्रखंड, प्रचंड, प्रज्वलित तेज।
जीवन है शूलों की सेज़।

1 comment:

Divine India said...

क्या लिखते हो भाई…
बेहतरीन!!!
हृदय की धड़कन की आवाज साफ सुनाई पड़ती है…।

© Vikas Parihar | vikas