माँग रहा है देश खून तुम बात शांति की करते हो।
खुद पर नहीं भरोसा है या लडने से तुम डरते हो।
माना मैने गांधीवाद की पायी तुमने थाती है।
पर हद से ज़्यादा क्षमाशीलता कायरता कहलाती है।
आज भीम हनुमान की बाजु कैसे शक्तिहीन हो गयी।
जिस भूमि पर पुजती थी वीरता क्यों वो वीर विहीन हो गयी।
क्या तुम समझोतों में मिलने वाली चोटों के आदी हो।
या अब भी गाल पर चांटा खाने वाले गांधीवादी हो।
इस देश की आज़ादी के खातिर कितने जीवनों की सांझ हो गयी।
क्या अब वीर जने नहीं जाते या मातायें बांझ हो गयीं।
गर तुम हनुमान बन जाओ तो मैं जामवंत बन जात हूं।
और तुम्हारी शक्ति का तुमको बोध कराता हूं।
दुनिया में जनाते पुत्र मगर इस देश में वीर जनाते हैं।
औघड खदान के लोहे से शमशीर बनाये जाते हैं।
दुश्मन की है क्या विसात वो क्या तुमसे टकरायेगा।
जो सौ करोड सीमा पर थूकें तो दुशमन बह जायेगा।
Monday, September 10, 2007
शक्तिबोध
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
No pictures?
Post a Comment