Friday, October 5, 2007

जीत किसकी-3

दृश्य-3

(वही पहले दृश्य वाली चौपाल पर गाँव के लोग बैठे हैं और एक शहरी युवक उनसे बात-चीत कर रहा है)

युवक: देखो भाईयो अगर आप लोग अपनी ज़मीनें सिंघानिया साहब को दे देंगे तो उससे आप लोगों का ही फायदा होगा। आप लोगों को रोजगार मिलेगा, गाँव का विकास होगा, आप लोगों के रहने का स्तर ऊंचा उठेगा वगैरह-वगैरह।
मंगलू: वो सब तो ठीक है बाबूजी पर यह सब होगा कैसे?
युवक: देखिये आप लोगों के पास अगर ज़मीन देखीं जाएं तो किसी के पास पाँच बीघा है तो किसी के पास दस बीघा।और आपलोग सभी खेती के लिए मौसम पर निर्भर हो जिसका आजकल कोई भरोसा नहीं है।
सभी(एक स्वर में): वो तो हैं बाबूजी
युवक: आप लोगों की लागत भी सही ढंग से नहीं निकल पाती।
सभी: हूं.......
युवक: और अगर आप लोग अपनी ज़मीनें सिंघानिया साहब को बेच देंगे तो यह दस-पाँच बीघा मिल कर हो जाएगी दो सौ बीघा। जिस पर सिंघानिया साहब खेती करवाएंगे।
घंसू: पर वो खेती करवाएंगे किससे?
युवक: ज़ाहिर सी बात है जब आप लोग यहां रहेंगे तो आप लोगों से ही करवाएंगे। और आपको रोज़ के हिसाब से पैसे भी देंगे। और इतना ही नहीं आप लोगों की ज़मीन वो दस हज़ार रुपए बीघा के हिसाब से खरीदेंगे।
(सभी लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगते हैं।)
मंगलू(थोड़े चिंतित स्वर में): पर साहब जे ज़मीन तो हमरे पुरखन की अमानत है। भले ही रूखी-सूखी दे पर हमाओ पेट पालत है। अन्नदाता है जे हमाई। और वैसे भी आज जौन जमीन के हम मालिक है बेचवे के बाद कल बई के नौकर हो जाएंगे।
युवक: देखो यह भावनाओं से नहीं दिमाग से काम लेने का वक़्त हैसोचो कल को तुम्हारे भी नाम से बैंक में एक-दो लाख रुपया जमा होगा। और रोज़ के अस्सी रुपए मिलेंगे सो अलग। अरे, इतना तो तुम लोगो की सात पुश्तें भी इकट्ठा नहीं कर पाएंगी। और जब सिंघानिया साहब का फार्म यहां खुलेगा तो साथ-साथ अच्छे-अच्छे स्कूल भी खुलेंगे। सड़कें भी पक्की बन जाएंगी। तुम्हारे पूरे गाँव का विकास होगा, तुम्हारे बच्चे भी पढ़-लिख पाएंगे। क्या यह सब तुम लोगों को अच्छा नहीं लगेगा?
मंगलू: अच्छो तो लगेगो साहब पर होंगे तो हम बिनके गुलामई। बिनके नौकर। बे अगर चाहेंगे तो काम देंगे नईं तो नईं देंगे। एक बार जमीन देबे के बाद हम बिनको का बिगाड़ लेंगे।
युवक: अरे भाई उनका काम कोई एक दिन का तो है नहीं। वो उधर शहर में एक मॉल.........(थोड़ा सोच कर) मेरा मतलब है सब्ज़ियों की एक बहुत बड़ी दुकान खोल रहे हैं। वहां पर ताज़ी-ताज़ी सब्ज़ियां बड़े ही सस्ते दामों में मिलेंगी। और जब रोज़ ताज़ी-ताज़ी सब्ज़ियाँ बेचनी होंगी तो काम भी रोज़ ही होगा। तो रोज़ आपको काम मिलेगा और रोज़ ही पैसा। अब मैने तो आपको समझा दिया है। आप लोग सोच-समझ लो, बात-चीत कर लो और जैसा भी हो बता देना। हाँ पर एक बात तो कहूंगा कि अगर आप लोग सिंघानिया साहब को अपनी ज़मीन देंगे तो फायदा आप लोगों का ही होगा। (जाते-जाते)अब आप लोग सोच लो कि क्या करना है?
(युवक चला जाता है और बाकी के गाँव वाले बैठ कर आपस में बातें करने लगते हैं)
घंसू: भैया हमे तो लगत है जे साहब भोत अच्छी बात बता गए हैं। सोचो एक लाख रुपए हमारे पास नगद जमा होगा। अरे! इत्तो रुपया तो हमसात जनम में भी नईं कमा पाएंगे। और फिर रोज की कमाई अलग।
फुलवा: हाँ भैया बात तो हमें भी जम गई। अच्छे स्कूल खुलेंगे। हमाए भी मोड़ा-मोड़ी पढेंगे और हमाओ नाम रोसन करेंगे। और बैसे भी हमाई जिन जमीनन के दस हजार रुपया बीघा कौन देगो।
मंगलू: अरे तुम सब लोग बौरा गए हो। तुम्हें अबे बस साहब के बे पैसा दिखाई दे रहे है। अबै जो तुम अपनी जमीनन के मालिक हो अपनी फसल अपनी मर्जी उगात और बेचत हो। बेचबे के बाद तुम कछू नई कर पाओगे।बस मजूर बन के रह जाओगे।
फुलवा: अरे मंगलू भैया पर आज-कल जे जमीन पैदावार किते देत है। लागत भी तो नईं निकालत। नफा तो भोत दूर की बात है।और बैसे भी मेहनत तो हम अबे भी पूरी करत है पर बाके बदले में हमे मिलत का है। जब बिनके इते काम करेंगे तो कम से कम रोज की दिहाड़ी तो मिलेगी।
मंगलू: अरे अक्ल के अंधो! बे तो बड़े लोग हैं जब इत्तो पैसा लगएंगे तो नुकसान तो उठाएंगे नईं।और जादा फायदा लेबे के लाने और लागत कम करबे के लाने बे आदमियन से जाद मसीनन से काम लेंगे। फिर जहाँ बड़ी-बड़ी मसीन आ जाएंगी तो बिते तुम्हाओ का काम रह जाएगो।
घंसू: पर मंगलू भैया जब बे हमाई जमीन लेंगे और बिन पर सब्ज़ियाँ लगाएंगे तो उसमें काम भी तो कर्वाएंगे। बैसे भी जो काम आदमी कर सकत है बो काम मसीन थोड़ी कर पाएगी।
मंगलू: अरे तुम लोग जिन अमीरन ए नईं जानत जे लोग पैसा ही खात हैं, पैसा ही ओढ़त हैं और पैसा ही बिछत हैं फिर बो पैसा गरीबन को खून बेच करई काय न आए। जब बड़ी-बड़ी मसीन लग जाएंगी तो पचास आदमियन को काम तो बो मसीन अकेली ही कर लेगी।बो भी आदमियन से जल्दी। ऐसे में जे बात की गरंटी कौन लेगो कि इते सबन ए काम मिलेगो। और तब न तो हमाए पास पेट भरवे के लांने जमीन होगी और न ही काम।
घंसू: मंगलू भैया अब तुम चाहे कछू भी कहो पर हमे तो बाबू जी की बात जादा अच्छी लगी। हम तो अब खेती बाड़ी छोड़ कर नौकरी करेंगे। कम से कम हम सबन को पेट तो भरेगो। (सभी गाँव वालों की तरफ देख कर) काय भैया?
(सम्वेत स्वर): हाँ
मंगलू: तुम लोग जे बात इसलिए बोल रए हो कि लालच ने तुम्हाई आँखन पर पर्दा डाल दओ है।अबे तुम्हे सिर्फ पैसा दिखाई दे रहो है। पर जब सक बात तुम्हाए सामने आएगी तब पछतावे के अलावा तुम्हाए पासकछू और रास्ता नईं रहेगो। और हाँ तुम लोग चाहे जो करो पर हम अपनी जमीन नईं बेचेंगे।

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© Vikas Parihar | vikas