दृश्य-4
(मंच दो भागों में बंटा हुआ है। एक तरफ युवक खड़ा है और दूसरी तरफ मि.सिंघानिया। दोनो मोबाइल से बात कर रहे हैं)
युवक: सर, मैने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली है पर वो मंगलू अपनी ज़मीन देने को तैयार ही नहीं हो रहा है।
मि.सिंघानिया: क्यों क्या कह रहा है वह?
युवक: सर, वह कह रहा है कि वह भूखा मर जाएगा पर अपनी ज़मीन नहीं देगा।
मि.सिंघानिया: अच्छा! उसकी इतनी औकात? तो अब साले को भूखा ही मरने दो। चलो तुम अपना काम आगे करते रहो बाकी इस मंगलू के बच्चे को मैं देख लूंगा। और हां अभी गाँव वालो को यही विश्वास दिलाते रहना कि हम अपना सारा कम उनसे ही लेंगे।
युवक: जी सर, आप उसकी चिंता न करे। Have a good day sir
( फोन रखने के बाद मि.सिंघानिया कुछ सोचते हैं और फिर अपने मोबाइल पर एक नम्बर डायल करते हैं)
मि.सिंघानिया: हलो.....
दूसरी तरफ से आवाज़ आती है: हलो।
मि.सिंघानिया: हाँ मैं सिंघानिया बोल रहा हूं। नेता जी से बात हो सकती है?
दूसरी तरफ से: जी सर, एक मिनट होल्ड कीजिएगा मैं सर को फोन देता हूं।
मि.सिंघानिया: हाँ
(कुछ देर बाद)
नेता जी: हाँ सिंघनिया साहब बताइए कैसे याद किया?
मि.सिंघानिया: अरे कुछ नहीं बस एक छोटा सा काम था।
नेता जी: अरे वो तो मैं समझ ही गया। आप बस काम बताइए।
मि.सिंघानिया: अरे आप तो मेरे उस जबलपुर के वेजिटेबल मार्ट वाले प्रोजेक्ट के बारे में जानते ही हैं।
नेता जी: हाँ...हाँ.. याद है। वही न जिसके लिए आपको ज़मीन चाहिए थी। पर आपको तो ज़मीन मिल गई न?
मि.सिंघानिया: अरे कहाँ मिली। बस 180 बीघा मिल चुकी है पर एक आदमी है जिसकी ज़मीन एकदम बीच में है पर वो तैयार नहीं हो रहा। बड़ा नाटक कर रहा है।
नेता जी: अरे बस इतनी सी बात। क्या नाम है उसका?
मि.सिंघानिया: मंगलू
नेता जी: मंगलू! हूँ... चलिए आपका काम हो जाएगा। पर हमारा ख्याल ज़रूर रखिएगा।
मि.सिंघानिया: अरे आप उसकी फिक्र मत कीजिए। आपका ख्याल तो हमें वैसे भी रहता है। वैसे अभी चुनाव आने वाले हैं। आपको हमारा पूरा सहयोग मिलेग। तन, मन और आपकी प्रिय चीज़ धन से।
नेता जी: फिर तो अब आप निश्चिंत हो जाइए। वो ज़मीन आपकी हो गई समझिए।
मि.सिंघानिया: और आप चढ़ावा भी पहुंचा ही समझिए।
(सिंघानिया ठहाका मार कर हँसता है। उधर से भी हंसने की आवाज़ आती है।)
Friday, October 5, 2007
जीत किसकी-4
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