पलकों के दर पे रुक गए कई ख्वाब आते-आते।
लाए शब-ए-गम साथ वो जनाब आते-आते।
मैने उसको देखा तो मदहोश हो गया,
हुस्न कर गया असर शबाब आते-आते।
आँख बंद हो गई और नब्ज़ थम गई,
इतनी देर कर गया गुलाब आते-आते।
हर रात बोले वाइज़ कि अब नहीं पिएंगे,
हर रात बदली नीयत शराब आते-आते।
लोगों ने पूछा मुझसे क्या रिश्ता है हमारा,
रह गया ज़ुबाँ पर जवाब आते-आते।
Friday, October 5, 2007
आते आते
लेखक:- विकास परिहार at 04:04
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment