Friday, October 5, 2007

आते आते

पलकों के दर पे रुक गए कई ख्वाब आते-आते।
लाए शब-ए-गम साथ वो जनाब आते-आते।

मैने उसको देखा तो मदहोश हो गया,
हुस्न कर गया असर शबाब आते-आते।

आँख बंद हो गई और नब्ज़ थम गई,
इतनी देर कर गया गुलाब आते-आते।

हर रात बोले वाइज़ कि अब नहीं पिएंगे,
हर रात बदली नीयत शराब आते-आते।

लोगों ने पूछा मुझसे क्या रिश्ता है हमारा,
रह गया ज़ुबाँ पर जवाब आते-आते।

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© Vikas Parihar | vikas