Friday, October 5, 2007

जीत किसकी-5

दृश्य-५
(गाँव की चौपाल पर सभी गाँव वाले बैठकर शराब पी रहे हैं। और बातें कर रहे हैं)

घंसू: भैया अब हम सबन के दिन फिरवे वाले हैं। एक तो इत्तो सारो रुपया मिल गओ। और अब कुछई दिनन में बाबू जी की खेती चालू हो जाएगी तो रोज की मजूरी मिलेगी सो अलग।
फुलवा: पर यार मंगलू के साथ अच्छा नहीं हुआ।
घंसू: अबे खाक अच्छा नहीं हुआ। बड़ा आया था दूसरे को ज़मीन बेचकर अपनी ही ज़मीन पर नौकरी नहीं करूंगा। अपने पुरखों की ज़मीन नहीं बेचूंगा। अब आ गया न रास्ते पर। बड़े साहब ने बैंक में सांठ-गांठ कर के उसकी ज़मीन भी छीन लई और एक फूटी कौड़ी भी नईं दई। अरे अगर पहले मान जातो तो कम से कम रुपया तो मिलते। सालो अब आ गओ न रास्ते पे।
फुलवा: पर यार कुछ भी कहो बड़े साहब ने सई नईं करो। अब मंगलू की अपनी ज़मीन हती। बा को मन बेचे चाहे न बेचे। जे तो साहब की जबरद्स्ती भई।
घंसू: अबे इसमें बड़े साहब की का गलती है। बे तो अच्छे से खरीद रहे हते। पैसा भी खूब दे रहे हते। जाए का पड़ी हती बिन बड़े लोगन से झगड़ा मोल लेवे की। जब जाने सीधे तरीके से नईं दई तो बिनने टेढ़े तरीके से ले लई।
फुलवा: जा को मतलब अगर हम सबई लोग बिने ज़मीन नई देते तो बे हमाई भी जमी ऐसे जबरदस्ती छीन लेते। अब जा बात की का गारंटी है कि बे काम हमई ए देंगे।
एक अन्य ग्रामीण: अरे यार अब तुम लोग जे फालतू की बात कर के नसा खराब मत करो। भाड़ में जाएं बड़े साहब और भाड़ में जाए मंगलू।
घंसू: हाँ यार हमे का पड़ी है सही-गलत की। हमें तो मौज करवे से मतलब है। और रही बात मंगलू की तो अब तो वो भी साला हमारे साथ बड़े साहब के खेतो मे नौकरी ही करेगा।
फुलवा: मगर यार ये मंगलू है कहाँ आज दिन भर दिखाई ही नहीं दिया?
घंसू: अरे यार क्या फरक पड़ता है। मरे साला। सुबह किसी ने उसे अपने खेतों की तरफ जाते देखा था। बैठा होगा वहीं पर।
फुलवा: चलो यार देख कर आते हैं एक बार।
घंसू: अबे क्या करेंगे चलकर।
फुलवा: चलो न यार चलते हैं। इसी बहाने घूम आएंगे। बहुत दिनों से अपने खेतो की तरफ भी नहीं गए। चलो न यार हो आते हैं।
घंसू: चलो चलते हैं। लेते हैं मज़े साले के। देखते हैं अभी उसकी हेकड़ी निकली या नहीं
(सभी उठ कर चल देते हैं। चलते-चलते सभी एक दूसरे से मजाक कर रहे है। बीच बीच मे मंगलू को भी पुकारते जा रहे हैं। तभी उन्हे थोड़ी दूर मंगलू बैठा दिखाई देता है।)
घंसू: अरे का मंगलू भैया इतनी रात को का मछ्छी मार रहे हो खेतन के बीच में बैठ कर। या फिर कोई आबे वाली है इते मिलबे के लाने?
एक अन्य ग्रामीण: अरे अब ज़मीन चली गई तो का हम लोगन से बात भी नई करोगे?
फुलवा(मंगलू के कंधे पर हाँथ मारते हुए): अब छोड़ो न मंगलू भैया। जो हो गया............
(मंगलू का शरीर धम्म्अ से गिर पड़ता है। सभी का नशा एक झटके में उतर जाता है और सब मंगलू के मृत शरीर को घेर कर बैठ जाते हैं। सभी की आँखों में आँसू आ जाते हैं।)
इसी निस्तब्धता में पर्दा गिरता है

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© Vikas Parihar | vikas