शाम के आते ही याद आती है यार की।
तन पर लगाए रखते हैं अब खाक प्यार की।
ताउम्र देखते रहे ख्वाबों में तुझको हम,
हसरत है फिर भी दिल में तेरे दीदार की।
साँस थम गईं मगर न नफ्ज़ बंद हुईं,
उस दिन हुई थी हद तुम्हारे इंतज़ार की।
जिनको ज़िन्दगी में कुछ हासिल नहीं हुआ,
वो पूछते हैं हस्ती क्या है खाक़सार की।
जिसने मुझको एक पल भी प्यार कर लिया,
मैनें अपनी ज़िन्दगी उस पर निसार की।
Friday, October 5, 2007
शाम के आते ही
लेखक:- विकास परिहार at 13:39
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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