Friday, October 5, 2007

कल्पना

चाँदनी के रस में नहा कर।
सर्दी की धूप की ओढे चादर।
मेरे हृदय में वो समाई।
जैसे हो वो मेरी परछाई।

खुश्बू उसके बदन की है जैसे,
पहली बारिश की पहली फुहारें।
महक उठा अचानक ये आलम,
छू कर आईं हैं उसको बहारें।

वो हँसे तो बने फूल कलियां,
आँसुओं से बना उसके सागर।
उसकी आँखों में है प्रेम इतना,
दूजा भाव न होता उजागर।

क्षमता अवनी सी उसने है पाई।
बस वही मेरे दिल में समाई।
क्या बताऊँ तुम्हें कि वो क्या है।
वह तो मेरी बस एक कल्पना है।

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© Vikas Parihar | vikas