तुम भी मुझ को अपनी बाहों में भर लो,
जैसे कोई कविता दिल को बहों मे भर लेती है।
खुद को अमर कर लेती है।
इक इक पल जब चिल्लाता है तन्हाई के आँगन में,
तेरी यादों की शबनम मेरी आँखों को भर देती है।
खुद को अमर कर लेती है।
प्रीति कभी मरती ही नहीं हम-तुम मर जाते हैं,
प्रीति तो दुनिय वालों के हृदयों में बसर कर लेती है।
खुद को अमर कर लेती है।
Wednesday, October 3, 2007
बाहों में भर लो.....!
लेखक:- विकास परिहार at 15:51
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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