Thursday, October 4, 2007

जीत किसकी-1

दृश्य-1

(गाँव की तमतमाती दोपहरी में चौपाल पर मंगलू बैठा हुआ है। बगल की पगडंडी से घंसू कुछ सोचते हुए जा रहा है। मंगलू उसे टोकता है।)

मंगलू: काय रे घंसू का हाल है? भोत दिनन से दिखाई नईं दओ?
घंसू: अरे कछू नईं मंगलू भैया थोड़ो काम धाम में लगे हते।
मंगलू: काय कहीं बाहर गओ हतो का?
घंसू: हाँ भैया अब का बताएं वो छुटकी है न बाकी तबीयत थोड़ी ज़्यादा खराब हो गई हती तो बाए दिखबे के लाने सहर गए हते। बाए (उसे) हस्पताल (हॉस्पिटल) में भर्ती करवावो पड़ो थो।
मंगलू: अरे फिर तो खर्चा भोत (बहुत) हो गओ होगो?
घंसू: सो तो भओ भैया पर का करें सब किस्मत की बात है। जा बार फसल थोड़ी अच्छी भई हती तो सोचो हतो कि बैंक को थोड़ो कर्जा चुका देंगे,गुलाबो के लाने एक साड़ी खरीद देंगे फिर जो बचेगो बा से घर को छप्पर सई करवा लेंगे। तो जा बार की बारिस तो सई ढंग से निकलई जैहे। पर देखो बिधी को बिधान आधी कमाई छुटकी की बीमारी खा गई बाकी जो बचो है बा में बस जा बार की बारिस के लएं छप्परई डाल सकत हैं। न तो गुलाबो की साड़ी आ पाएगी और न बैंक को कर्जा पट पाएगो।
मंगलू: जे सब तो किस्मत को ई खेल है भैया।
घंसू:पर ई किस्मत भूखन को निवालो ही काय के लाने छीनत है। बिनको काय नईं छीनत जो आधो खा के आधो फेंक देत हैं?
मंगलू: सब ऊपर बाले को खेल है भैया और सच बात तो जे है कि अब जा खेती बाड़ी में कछू सार नईं रहो।
घंसू: सच्ची कह रए हो भैया हमाओ तो मन कर रहो है कि अगर कोई तैयार हो जाए तो आजई सारी जमीन बेच बाच के सहर चले जाएं। बिते कम से कम मजूरी-दिहाड़ी कर के तो पेट पाल सकत हैं। जा खेती से तो पार नई पड़त। एक बार फसल अच्छी हो जात है तो फिर दो तीन साल कचू होतई नईं है।
मंगलू: बो सब तो ठीक है पर अब पुरखन की जमीन है बेच भी तो नईं सकत।और बैसे भी इते तो सबई एक जैसे हैं। कौन के पास इत्तो जुड़ो है कि वो तेरी जमीन खरीद ले। इते तो सबई परेसान हैं।
घंसू: अच्छा भैया अब हम चलत हैं, गुलाबो बाट देख रई होगी।
मंगलू: अच्छा भैया राम-राम।
घंसू: (जाते हुए) राम-राम भैया राम-राम।

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© Vikas Parihar | vikas