Saturday, October 27, 2007

कभी जो सामने आओ

कभी जो सामने आओ तो ये पूछें तुमसे।
क्यों ज़िक्र आते हि मेरा हो तुम यूं गुम-सुम से।
क्या बात हुई कि तुमने मेरा दिल तोड़ दिया।
ये किसके कहने पर दामन को मेरे छोड़ दिया।
क्यों बिछड़ने के बाद तन्हाई का यह आलम है।
क्यों हैं ज़िन्दगी में पतझड़ के ये मौसम से।
कभी जो सामने आओ तो ये पूछे तुमसे।

क्यों रात भर मेरी आँखों में नींद न आई एक पल।
क्यों हर घड़ी दिल में मची है एक हलचल।
चले गए यूं दूर तुम एक बार तो सोचा होता,
शिकवा हुआ जो तुमको एक बार न कहा हमसे।
कभी जो सामने आओ तो ये पूछें तुमसे।

1 comment:

बोधिसत्व said...

क्यों हर घड़ी दिल में मची है एक हलचल।
कभी-कभी थोड़ रोमानी हो जाना अच्छा लगता है....अच्छे विचार और भाव को रखने के लिए बधाई

© Vikas Parihar | vikas