काहे तड़पाए मोहे ओ साँवरे।
प्रीत में तेरी नैना भए बावरे।
जब भी जिधर भी देखूं तू ही दे दिखाई।
मैं बन गई हूं मीरा तू मेरा कन्हाई।
तू मोहे लेके चल अब अपने गाँव रे।
हर पल तुझे पाने की है अभिलाषा।
प्रेम सुधा बरसा दे मन मेरा प्यासा।
नहीं मिलता चैना मोहे किसी ठाँव रे।
रातभर मोरे नयनन में निंदिया न आए।
दिनभर रहे मोरे नयना भरमाए।
मोहे अपना ले कर दे मो पे छाँव रे।
लम्बी डगर है ओ मोरे सैयाँ।
आकर थाम ले तू मोरी बैयाँ।
दे-दे सहारा थक गए मोरे पाँव रे।
Sunday, October 28, 2007
प्रेम-विनय
लेखक:- विकास परिहार at 22:48
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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