आज हर जगह होता देखो झण्डे का अपमान।
चीर हरण हो रहा उसी का जो है देश की शान।
चोर लुटेरे लूटें दिन में और रखवाले पैसे खाएं।
पहले भरें हम जेबें उनकी फिर फरियाद लिखाने जाएं।
रक्षक-भक्षक हुए यहां पर दोनो एक समान।
आज हर जगह होता देखो..........।
कहाँ चले गए सुभाष चंद्र कहाँ भगत, आज़ाद खो गए।
कैसे हो गया खून ये पानी कहाँ देश के नौजवाँ सो गए।
हो गई है क्या धरा देश की वीरों से वीरान।
आज हर जगह होता देखो............।
इसी के खातिर हुई क्रांति इसी के खातिर हुई लड़ाई।
आज़ादी के परवानों ने स्व-मुण्डों की भेंट चढ़ाई।
इसी के खातिर सीमा पर गोली खाते वीर जवान।
आज हर जगह होता देखो............।
जो हर दम झूठे वादे करते खद्दर जिनकी पहचान।
रिश्ता नहीं किसी से इनका, बस सोना इनका ईमान।
इन्हीं के हाथ की कठपुतली बना गया यह संविधान।
आज हर जगह होता देखो............।
Thursday, October 18, 2007
झण्डे का अपमान
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1 comment:
विकास जी बहुत ही सुन्दर कविता है। सुबह सुबह पढकर दिन बन गया । आपका परिचय भी सटीक है ।
यैसी विकास की दूर से विकास जी का दूर रहना ही अच्छा है :)
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