फिर से तेरी याद आई शाम के जाते-जाते।
फिर खाली हुए जाम मेरे शाम के जाते-जाते।
सहर से नाम की मैने तेरे इबादत की,
फिर लब पे आया नाम तेरा शाम के जाते-जाते।
जिस किसी गली से तू एक बार जो गुज़री,
मच गया कोहराम वहाँ शाम के जाते-जाते।
लोगों ने तेरे हुस्न की तारीफ जो करनी चाही,
लिखे गए कलाम कई शाम के जाते-जाते।
Thursday, October 18, 2007
शाम के जाते-जाते
लेखक:- विकास परिहार at 14:01
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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1 comment:
बढ़िया है-गजल की जानकारी लो उस क्लास में जाकर सुबीर सर की. तब काफिया, रदीफ वगैरह के विषय में जान जायेंगे और शिल्प भी बढ़िया हो जायेगा.
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