नीचे थी हरी भरी धरती ऊपर था अंबर विशाल।
देख कर गरिमा पृथ्वी की वृक्ष विहग करते करताल।
इसकी रक्षा करने को थे सौ-सौ बाँके निहाल।
देख कर जिसका रूप सलोना स्तब्ध हुआ करता महाकाल।
जाने फिर क्यों आज बदल गया सबका खयाल।
सामप्रदायिकता और भ्रष्टाचार ने आज फैलाया अपना जाल।
अब है नमुझको बस इसका मलाल।
न नीचे है हरी भरी धरती न ऊपर है अंबर विशाल।
फिर भी मुझको है इतना यकीन आएगा फिर से वो काल।
न तो होगा कोई शक़ न होगा कोई सवाल।
पृथ्वी पर रहने वाला हर प्राणी होगा खुशहाल।
नीचे होगी हरी भरी धरती ऊपर होगा अंबर विशाल।
Tuesday, October 16, 2007
भूत-वर्तमान-भविष्य
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1 comment:
आमीन!!!
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