उसने मुझको ऐसे देखा शर्माती सी आँखों से।
जैसे कोई चाँद झाँकता घने नीम की शाखों से।
मुस्कान उसकी मेरे जीवन को रंगों से भर देती है।
साँसें उसकी हृदय वीणा को सतरंगी स्वर देती हैं।
रह रह कर के याद आता है उसका छुई मुई सा शरमाना।
जीवन है अनमोल यह कितना उससे मिला तब यह जाना।
बादल सी है ज़ुल्फ घनेरी रात से नैना कजरारे।
उसके बदन की तपिष है ऐसी जैसे जलते अंगारे।
उसको अब मैं क्या उपमा दूं वो तो जुदा है लाखों से।
उसने मुझको ऐसे देखा शरमाती सी आँखों से।
Wednesday, October 3, 2007
वो......
लेखक:- विकास परिहार at 16:04
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
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