तन्हाइयों ने मुझको कुछ इस तरह से तोड़ा,
अब आईने में अपना अस्तित्व खोजता हूँ।
Friday, November 16, 2007
तन्हाई
लेखक:- विकास परिहार at 18:08
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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तन्हाइयों ने मुझको कुछ इस तरह से तोड़ा,
अब आईने में अपना अस्तित्व खोजता हूँ।
लेखक:- विकास परिहार at 18:08
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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© Vikas Parihar | vikas
1 comment:
बहुत खूब. अच्छा है.
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