Friday, November 16, 2007

तन्हाई

तन्हाइयों ने मुझको कुछ इस तरह से तोड़ा,
अब आईने में अपना अस्तित्व खोजता हूँ।

1 comment:

बालकिशन said...

बहुत खूब. अच्छा है.

© Vikas Parihar | vikas