Monday, November 19, 2007

उसे सामने लाओ ज़रा

भीड़ से जो है जुदा उसे सामने लाओ ज़रा।
गर कहीं पर है खुदा उसे सामने लाओ ज़रा।

आज फिर खाकर के ठोकर मैं गिरा हूं राह में,
जिसने नहीं दी बद्-दुआ उसे सामने लाओ ज़रा।

यहाँ रहने रहने वाला हर एक शख्श गुनहगार है,
जिसने किया न हो गुनाह उसे सामने लाओ ज़रा।

यहाँ सब मजबूर हैं प्रतिकार भी है एक खता,
है कौन जो बोला यहाँ उसे सामने लाओ ज़रा।

1 comment:

Akash Deep Sinha said...

प्रिय विकास जी,

आपकी इस मार्मिक कविता ने मानव समाज पर एक मजबूत प्रहार किया है और उन्हे जागरूक करने का एक सफल प्रयास किया है।
उम्मीद करता हूं कि आपका यह प्रयास जरूर रंग लायेगा।
प्रयास जारी रखे।

शुभकामनाओं सहित।
आकाश सिन्हा

© Vikas Parihar | vikas