हम जब भी अपनी
भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
तो अंतर्मन में कहीं
अपने आप से ही डरते हैं।
(दावा करते हैं)
भावनाओं को शब्दों को सींखचों
में कैद कर लेने का।
समस्त सागर को
अंजुली में भर लेने का।
हर दिन, हर पल, हर क्षण
वैचारिक परतंत्रता का ज़हर पिया करते हैं।
और यह सोच कर खुश होते हैं
कि हम स्वतंत्रता से जिया करते हैं।
Sunday, December 30, 2007
स्वतंत्रता
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3 comments:
बढ़िया है ....सही कहा आपने...
नए साल में आप और भी अधिक ऊर्जा और कल्पनाशीलता के साथ ब्लॉगलेखन में जुटें, शुभकामनाएँ.
www.tooteehueebikhreehuee.blogspot.com
ramrotiaaloo@gmail.com
कविता अच्छी लगी ।
नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
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