Saturday, December 29, 2007

कवितावतरण

अंधेरों में निराशा के.
किरण हो एक आशा की.
पकड़ कर डोर भाषा की.
जो हो जाते हैं स्वर मुखरित,
तो फ़िर बेदी से भावों की,
निकल पड़ती है एक गीता,
अवतरित होती है कविता

1 comment:

Anonymous said...

This is my another blog, I see where you place.

Happy new year
My friend

© Vikas Parihar | vikas