समय के प्रसव से जन्मती है कविता,
जिसे उकेरा जाता है क्षणों के अक्षरों से,
काल के पन्नों पर.
नहीं रुकता समय,
न पथ
सदैव रहते गतिमान.
अविरत, अविचल, अविराम.
हर पल, हर क्षण,
करता रहता पुनर्लेखन.
उन कविताओं का
जो उपजती हैं
भावाग्नि के वमन से
और
छोड़ देती है रिक्तस्थान
पीड़ित काव्यांशों का.
Friday, January 11, 2008
कविता
लेखक:- विकास परिहार at 16:38
श्रेणी:- नया प्रयोग
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1 comment:
भाई आपके ब्लॉग प्रथम बार देखा है बहुत अच्छा लगा आपकी कविता बहुत बढ़िया है आगे भी लिखते रहिये .
समयचक्र : जबलपुर
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