Friday, March 14, 2008

मुम्बई की सड़कें

कभी देख कर इतने पापों को होते
वो है कौन जिसकी भुजाएं न फड़के
न जाने हैं क्यों मौन मुम्बई की सड़कें

न बदलीं कभी ये बदलते समय में
गम में, खुशी में, पराजय में, जय में
देखा इन्होने सदियाँ बदलते
ज़मीन पर चमकते सितारों को चलते
देखे कई इनने बम के धमाके देखे ,
देखे इन्होंने इंसान पिघलते
फ़िर भी कभी कुछ भी बोलीं नहीं ये,
सिसकतीं रहीं अपने अन्तरह्रदय में

जलाया इन्हें गर्मियों में खुदा ने
डुबाया इन्हें बेदर्द आसमाँ ने
मगर ये यूं ही बस चली जा रहीं हैं,
कई बार छोडा इन्हें कारवां ने
कभी ये हंसी हैं बिछड़ते हुए भी,
कभी ये हैं रोईं अन्तः प्रणय में

देखा खुले आम जिस्मों को बिकते
कड़ी धूप में आम इंसान को सिकते
सदा आदमी इनने भागते ही देखा,
न देखा इन्होने किसी को भी टिकते
झूमीन हैं ये अलमस्त उत्सवों में,
जलीं हैं स्वयं ये धधकते प्रलय में

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© Vikas Parihar | vikas