Thursday, May 8, 2008

ज़िंदगी का नाम

समय के पहियों पर दौड़ती जाती है ज़िंदगी
अविरत, अविराम.
सुबह उठ कर वही दिनचर्या,
दोपहर को वही ऑफिस की झिक-झिक,
शाम को वही तन्हाई, वही जाम.
ऐसे ही चुकते हुए जाम के साथ,
चुकती हुई शाम के साथ,
चुक जाता है ज़िंदगी का भी नाम.

1 comment:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है विकास.

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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

शुभकामनाऐं.

-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)

© Vikas Parihar | vikas