पहली नज़र मे शायद ऐसा कुछ भी नहीं था जो मुझे आकर्षित कर सके सिवाय उसके बहुत ऊंचे पद और प्रभावशाली व्यक्तित्व के। आवाज़ बहुत मीठी थी। आंखें जैसे बहुत कुछ छिपाने की कोशिश करती थीं। जब भी मैं उसे देखता था तो लगता था कि इन शांत आंखों के अन्दर न जाने कितना बड़ा बवंडर छिपा हुआ है। पर फिर भी उसकी हंसी बहुत निर्मल थी। आज भी जब आंखें बन्द करता हूं तो उसका हंसता हुआ चेहरा याद आता है। पता नहीं उस वक़्त का आकर्षण कब दिल की गहराई के किसी अन्धेरे कोने मे आकर छिप कर बैठ गया पता ही नहीं चला। आज जब समय की निरंतर आगे बढ़ती हुई सुइयों को पीछे घुमाता हूं तो एक एक कर के सारी बातें याद आ जातीं हैं। वो जब पहली बार ऑफिस मे रात भर रुके थे तो अचानक उसका कहना कि “यार चाय पीने का मन कर रहा है।“ यह सुन कर यूं तो सभी एक दूसरे का मुंह देखने लग गये थे। फिर उसी समय बस स्टेंड जा कर चाय लाया तो चाय की पहली चुस्की के बाद जो संतुष्टी देखी तो शायद उस समय मन को एक अजीब सी अलौकिक अनुभूति हुई। उस एक पल में जैसे सारी दुनिया कि खुशी समा गई थी। फिर उसके बाद मेरा सारा समय बस ऐसे ही पलों का इंतेज़ार करने मे गुज़रने लगा जिनमे उसके मुंह से किसी चीज़ की मांग निकले और मैं उसे पूर करूं। फिर उसके उसी हंसमुख चेहरे को देखूं। मुझे लगता है कि उस समय मुझे उसके चेहरे पर संतुष्ति के भाव को देखने का ऐसा नशा चढ़ा था कि और कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।
हालांकि मेरे साथ और भी कई लोग थे वे भी किन्ही न किन्ही तरीको से उसे प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। और मैं अपने अंतर्मुखी व्यक्तित्व की वजह से एक मूक दर्शक की तरह येह सब होते हुए देख रहा था। और जिस तरह समय की मार से एक सदी की मुलाय चीज़ें दूसरी सदी तक आते आते कठोर हो जाती हैं उसी तरह उसका नाम भी समय के साथ मेरे दिल मे और गहरा गुदता जा रहा था। जहां और लोग उसे प्रभावित करने के लिए कई सारे जतन कर रहे थे वहीं मैं बस उसकी छोटी छोटी ज़रूरतें पूरी कर के ही खुश था। और ऐसे ही एक दिन उसके जाने का दिन आ गया। मैं सुबह जल्दी उठ कर उसे छोड़ने के लिए एअरपोर्ट पहुंचा तो देखता हू कि मैं कुछ ज़्याद ही जल्दी आ गया हूं। करीब एक घंटे के बाद वो जब वो आई तो उसका सबसे पहला प्रश्न था “कब से इंतज़ार कर रहे हो?”
मैने बोला “बस अभी एक ही घंटा हुआ है”
उसने फिर पूछा “और सिगरेट कितनी पीं इतनी देर में?”
मैने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया “अभी तो बस चार ही पीं हैं”
उसने भी अपने उसी अन्दाज़ मे कहा “तुम नहीं सुधरोगे”
मैने भी मुस्कुरा कर कहा “अरे अगर मैं सुधर गया तो मैं मैं नहीं रहूंगा”
फिर काफी देर तक हम लोग यूं ही बातें करते रहे कि तब तक उसके प्लेन का टाइम हो गया। तभी अचानक मुझे याद आया तो मैने बोला कि यार मैं तुम्हारी घड़ी लाना भूल गया तो उसने भी हंसते हुए कहा कि कोई बात नहीं और बह एयरपोर्ट के अन्दर चली गई।
हालांकि उस से आज भी फोन पर बात हो जाती है। बीच में एक बार वो इस शहर में आई भी थी पर शायद समय की कमी के कारण उसके लिए सूचना दे पाना भी सम्भव नहीं था इसीलिए नहीं दी। पर उस दिन के बाद से उसकी घड़ी मेरे सिरहाने ही रखी हुई है और मैं उस घड़ी की टिक टिक मे उसके दिल की धड़कनें आज तक सुनता हूं।
3 comments:
विकास जी
इस प्रेम कहानी को एक आकार तो दे दीजिए,यदि सच में लेखक को उस कैरेक्टर से इश्क़ हो ही गया हो तो बयाँ ही करना होगा
इश्क़ कीजे सरे आम खुल कर कीजै
भला पूजा भी कोई छिप छिप के किया करता है
vakai bhut sundar lekha likha hai. likhate rhe.
टिक टिक...टिक टिक..बहुत बढ़िया लिखा है.
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