हमारे देश मे यह प्रथा काफी पुरानी है कि अर्धांगिनी यनि कि धर्मपत्नि रणक्षेत्र में जाने वाले पति को हथियार थमाती है और हर स्त्री, पुरुष की वीरगथाओं को सुन कर अपना हृदय उस पुरुष को दे बैठती है। त्रेता मे भगवति सीता खुद राम को धनुष दे कर आखेट के लिए भेजती थीं। जोधाबाई भी युद्ध के वक़्त अकबर को हथियार अपने हाथों से देती थीं। संयोगिता भी पृथ्वी राज चौहान की वीर गाथाओं को सुन कर ही सर्व प्रथम उन पर मोहित हुई थी। कालांतर में गुण नहीं बदले बस प्रकार बदल गए हैं।
मेरा भी एक मित्र है जो हमेशा कहता रहता है कि “मैं तो आदमी काटने से भी परहेज नहीं करता।” मैं जब भी उसके बारे मे सोचता हूं तो मुझे दुनिया एक सब्ज़ी के बगीचे की तरह नज़र आती है। जहां भांति-भांति की सब्ज़ियां लगी हुई है और मेरा यह मित्र छुरा ले कर उन्हे काटने के लिए बैठा हुआ है। इस समय मुझे गांधी जी अपने इस मित्र के सामने बहुत छोटे और अज्ञानी नज़र आते हैं जो व्यर्थ ही आजीवन लोगों को अहिंसा का पाठ सिखाते रहे। हां तो मैं बात कर रहा था अपने इस मित्र की, तो इसकी एक बहुत अच्छी आदत थी और वो यह कि जब भी कोई बात होती तो यह घुमा फिरा कर उस बात को खत्म अपने इसी डायलॉग से करता कि “मैं तो आदमी काटने से भी परहेज नहीं करता।“ और बात-बात पर अपने शरीर के कुछ घावों को दिखा कर उनको इतना अतिरंजित कर के उनकी कहानी सुनाता जैसे वो घाव किसी गली नुक्कड़ की लड़ाई में नहीं बल्कि कारगिल-युद्ध के दौरान घुसपेठियों को खदेड़ते वक्त उसे उपहार स्वरूप मिले हों। मैं जब भी उसके मुखार्विंद से उसकी वीरगाथाएं एवं वीरता के कारनामे सुनता तो मुझे अपनी भीरुता पर अन्दर ही अन्दर शर्म आने लगती और मैं अपने आप को बेचारे टाइप का महसूस करता।
वहीं उसकी प्रेमिका भी भारतीय सभ्यता का निर्वाह बड़ी सादगी से करती थी। वह भी अपनी सभी सहेलियों को बड़े गर्व से अपने प्रेमी की वीरता के कारनामे बड़े मसालेदार तरीके से सुनाती थी। और इस समय उसकी सभी सहेलियों को उनके डॉक्टर एवं इंजीनियर प्रेमी बड़े ही तुच्छ और निकम्मे लगने लगते। भला वो लड़के भी कोई लड़के हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में किसी भी तरह की लड़ाई नहीं की और जिनके शरीर पर किसी तरह के मार-पीट के चिन्ह न हों। ऐसे ही उसकी एक सहेली का एक प्रेमी मेरे पास बहुत चिंतित हो कर आया और कहने लगा कि “भैया मैं तो बड़ी समस्या में फंस गया हूं। अब आप ही बताइये कि मैं क्या करूं?” मैने उस से बड़ी सहृदयता से पूछा कि “क्या हो गया तुम इतने परेशान क्यों हो?” तो वह बड़ा परेशान हो कर बोलने लगा कि “भैया मेरी गर्लफ्रेंडॅ को पिछले कुछ दिनों से पता नहीं क्या हो गया है वह अब मुझसे हमेशा यह कहती रहती है कि मैने अपनी ज़िन्दगी के 25 वर्ष यूं ही व्यर्थ गंवा दिये। आज तक एक भी लड़ाई नहीं की, किसी के साथ मार-पीट नहीं की, मेरे शरीर पर किसी तरह का कोई निशान नहीं है। और अगर एक हफ्ते के अन्दर मैने किसी से लड़ाई नहीं की तो वह मुझे छोड़ देगी।“ उसकी यह बात सुन कर मेरे सामने सारा किस्सा साफ हो गया। मैने उस से कहा “तो इसमें कौन सी बड़ी बात है अगर तुम्हें अपना प्रेम बचाना है तो भिड़ जाओ किसी से भी।“ तो वह बोला “ऐसे कैसे किसी से भी बिना किसी कारण के भिड़ जाऊं।” तो मैने उसे समझाते हुए कहा कि “ तुम्हे किसने कहा कि किसी से भिड़ने के लिये किसी कारण की आवश्यकता होती है। अब अमेरिका को ही देख लो वह क्या किसी से कारणवश भिड़ता है? और वैसे भी आज कल प्रेम और लड़ाई एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं अब अमेरिका को ही लो वह दूसरे देशों पर हमला करता है क्यों कि वह वहां के लोगों को प्यार करता है। पाकिस्तान काश्मीर मे आतंकवादी भेजता है क्यों कि वह काश्मीर को प्यार करता है। एक भाई दूसरे भाई का गला काटता है क्योंकि वे एक दूसरे को बेहद प्यार करते हैं। इसीलिए आजकल अगर अपने प्रेम को बचाना है तो हिंसा तो करनी ही पड़ेगी। वर्ना तुम्हरी प्रेमिका तुम्हे छोड़ कर चली जायेगी। मेरी बात पता नहीं उसे अच्छी लगी य नहीं पर वह दोबारा मेरे पास नहीं आया।
परंतु मेरा दोस्त और उसकी प्रेमिका जब तब मुझे मिलते रहते हैं। एक दिन मेरे दोस्त के बर्थडे पर मुझे वे दोनो मिल गये। मैंने अपने दोस्त से पूछा “और आज क्या गिफ्ट मे मिल रहा है?” तो मेरे दोस्त ने मुस्कुरा कर कहा कि “देख आज इसने मुझे कितनी प्यारी कटार गिफ्ट की है।” मेरे मन ने यह सुनते ही झट से उस सक्षात देवी को प्रणाम कर लिया जो अपने प्रेमी को उपहार में कटार देती है और मन से आवज़ आई कि धन्य हो देवी तुम्हारे इन श्रीचरणों में इस निकृष्ट प्राणी का शत शत नमन।
ऐसे ही एक दिन वह मुझे अपनी पीठ का एक निशान दिखा कर बोला कि “पता है यह चोट मुझे तब लगी थी जब आमुक बन्दे से मेरी लड़ाई हो गई थी। और पता है तब मेरी उम्र सिर्फ 14 साल थी।“ मुझे लगा कि इतनी खुशी खुद खुदीराम बोस को तब नहीं हुई होगी जब वह फांसी पर लटका था। पर चाहे कुछ भी हो मेरा यह दोस्त है बहुत ही गज़ब जब भी कोई पंगा होता है तो मेरा यह दोस्त छूटते ही कहता है “चल उसे तोड़ कर आते हैं। या चल बहुत हो गया अब उसे फोड़ ही डालते है।“ ऐसा लगता है जैसे यह किसी इंसान को तोड़ने फोड़ने की बात ऐसे करता है जैसे कि वे सभी कोई मिट्टी के पुतले हों। उसका और उसकी प्रेमिका का ज़िंदगी को देखने का नज़रिया एक दम ही अलग है। हुआ यूं कि अक बार मेरे इस दोस्त की गर्दन में हल्की सी मोच आ गई और उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। तो उनकी यह प्रेमिका जो अपने प्रेमी की वीरगाथाओं का बखान करते कभी अघाती नहीं थीं और जो इन्हें कटार सप्रेम भेंट स्वरूप देतीं थी वे मोहतरमा इन्हें अस्पताल में भर्ती करते वक़्त फूट फूट कर रोने लगीं। जब डॉक्टर इन्हें इंजेक्शन लगा रहा था तो इनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह डॉक्टर उनके इंजेक्शन न लगाकर इनके शरीर मे गोली दाग रहा हो। यह सीन देख कर मेरे मुख से अनायास ही निकल पड़ा कि वाह री मेरे भारतवर्ष की आधुनिक युगीन नारी जो देती है भेंट स्वरूप कटारी और बताती है तलवार और फरसों की लड़ाई के किस्से पर डरती है एक इंजेक्शन से। पर इस बात में भी कोई आश्चर्य नहीं है क्यों कि अक्सर ऐसा देखने में आया है कि बड़े बड़े योद्धा छोटी सी छिपकली और कॉक्रोच से डरते हैं। हम लोग अर्जुन महाभारत तो जीत जाता है परंतु अपने अंतर्द्वन्द से लड़ने के लिए उसे भी कृष्ण की आवश्यकता पड़ती है। हम बाहर के दुश्मनों का तो डटकर मुक़ाबला कर लेते हैं परंतु अपने अन्दर के शत्रुओं से लड़ने मे नाकाम हो जाते हैं। सिकन्दर भी विश्व को जीतने की राह पर तो बहुत आगे निकल पड़ा था परंतु स्वयं को जीतने की राह पर एक कदम भी न बढ़ा सका। अंग्रेजों ने दुनिया भर पर कब्ज़ा कर लिया था पर अपनी बुराईयों पर कब्ज़ा नही कर पाये।
मगर मेरा यह दोस्त इन सब से अलग है क्यों कि यह सब्ज़ी काटने में एक बार परहेज़ कर लेता है परंतु आदमी काटने में कतई परहेज़ नहीं करता ये अलग बात है कि आज तक इसे आदमी काटने का कोई एक्सपीरियंस या तजुर्बा नहीं है। और इस से भी अलग है इसकी प्रेमिका जो अपने प्रेमी के गहरे घावों को तो बहुत ही प्रसन्नता से देख लेती है परंतु उसे एक इंजेक्शन लगते नहीं देख सकती। एक बार की बात है दोनो नवदुर्गा महोत्सव देख रहे थे तभी एक मनचला मेरे इस दोस्त की प्रेमिका को छेड़ने के इरादे से कुछ कमेंट कर देता है। प्रेमिका बड़े अरमान ले कर अपने प्रेमी को यह बात बताती है। उसे लगता है कि आज यह अपने प्रेमी के हाथों एक इंसान कटते देख ही लेगी। उसके चेहरे पर वैसी ही खुशी नज़र आती है जैसी किसी बर्थडे पार्टी के वक़्त बच्चों के चेहरे पर केक कटने के पहले नज़र आती है। मेरा यह दोस्त भी बड़े तैश में उस लड़के के पास पहुंचा और पहुंचते ही उसकी मां-बहन के लिये जितने मधुर वाक्य बोल सकता था बोलने लगा ऐसा लग रहा था जैसे इस लड़की को उस लड़के ने नही बल्कि उसकी मां य बहन ने छेड़ा हो। यह मुद्दा अब व्यक्तिगत से अब पूर्णतः पारिवारिक हो चुका था। परिवार का शायद ही ऐसा कोई सदस्य बचा हो जिसे अपशब्द न कहे गये हों। इतने में मैं भी वहां पहुंच गया और यह सब देखने लगा। हमारे यहां यह प्रथा भी बहुत प्रचलित है कि हम लोग दूसरे के घर में लगी आग का तमाशा बहुत ही मज़े से देखते हैं। मैं अपने मित्र की प्रेमिका के चहरे पर इंसान को कटते हुए देखने की वही कौतुहल दृष्टि देख रहा था जो कि भारत-पाकिस्तान के मैच के दौरान सभी भारतीयों के चेहरे पर तब होती है जब चार गेंदों पर चार रन चाहिये होते हैं और हर खाली जाती गेंद उन्हें निराश कर देती है। इस प्रेमिका के चहरे पर भी कुछ वैसे ही भाव आ-जा रहे हैं। जैसे जैसे समय गुज़रता जा रहा है वैसे वैसे इसको अपना इंसान को कटते देखने का सपना टूटता सा लग रहा है। उधर मेरे उस दोस्त और उस लड़के के बीच की गहमा गहमी तो समय के साथ बढ़ती जा रही थी परंतु बात इसके आगे बढ़ ही नहीं रही थी। खैर बात आगे बढ़ भी कैसे सकती थी जब पूरे देश में हमारे पड़ोसी देश से भेजे जा रहे आतंकवादियों के प्रत्यक्ष प्रमाण होने के बावज़ूद दोनो के बीच बात सिर्फ आर-पार की लड़ाई की बात तक ही पहुंच पाती है तो यहां उस बात के आगे बात कैसे बढ़ जाती। काफी समय तक यह सब देखने के बाद जब मुझे यह यकीन हो गया कि अब किसी भी हालत में बात आगे नहीं बढ़ेगी तब मैने बीच बचाव कर के दोनों को अपने अपने रास्ते जाने को कहा और मैं अपने इस दोस्त और उसकी प्रेमिका के साथ हे चल पड़ा। उसकी प्रेमिका के चेहरे पर विषाद की रेखायें साफ दिखाई दे रही थीं। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी बच्चे का कोई नया खिलौना टूट गया हो। अब मैंने अपने दोस्त से कहा कि “यार तूने फालतू में ही उस बंदे से पंगा लिया कभी कभी ऐसी जगह पर बाकी लोगों की तरह गांधी जी के पहले बंदर का अनुशरण कर लेना चाहिये।“ तो उसने अपने उसी अन्दाज़ मे कहा कि “यार वो तो उसकी किस्मत अच्छी थी कि अभी नवरात्रे चल रहे हैं और इस समय मैं किसी पर हांथ नहीं उठाता नहीं तो तू तो जानता ही है कि मैं आदमी काटने से भी परहेज़ नहीं करता।“ इस समय मेरे मित्र के मुख से यह बात सुन कर उसकी प्रेमिका के सब्र के बांध टूट गये। वह एक दम चिढ़ कर बोली “एक केक तो सही ढंग से कटता नहीं है बात करते है आदमी काटने की।“
Monday, September 1, 2008
आदमी काटने का परहेज़
लेखक:- विकास परिहार at 00:51
श्रेणी:- कथायें एवं किस्से, व्यंग्य
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