कोई पुरुष किसी स्त्री की कमज़ोरी होता है इस बात के तो कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलते परंतु स्त्री हर पुरुष की कमज़ोरी होती है यह बात तय है। इसीलिए चाहे कितना भी बड़ा योगी क्यों न हो उसकी तपस्या हमेशा भंग हुई है और उस तप-भंग के पीछे किसी न किसी स्त्री का ही हाथ रहा है। आज तक किसी स्त्री के तप भंग की कोई घटना का उल्लेख नहीं पाया गया और यदि पाया भी गया तो उसके पीछे किसी पुरुष का हाथ नही रहा। एक समय पर स्थितियां इतनी बिगड़ गयी थीं कि कई योगियों ने तो सिर्फ भोग की लालसा में ही योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाया था। तब तंग आकर ईश्वर को अपना यह तप भंग करने का प्लान और तरीका बदलना पड़ा।
परंतु पुरुष का स्त्री देह के लिए चिरस्थाई कौतूहल अभी तक वैसा ही है जैसा कि आदि काल मे था। अभी कुछ दिनो पहले हमारे कार्यालय मे एक लड़की साक्षात्कार देने के लिए आई। उसके वस्त्रों को देख कर ही लग गया कि वह साक्षात्कार के लिए आई है। उसकी सुगढ़ देह के सारे अंग प्रत्यंग मानो उसके वस्त्रों की सीमाओं को लांघ कर बाहर आने को लालायित हों। ऐसा लग रहा था कि उसके अंग प्रत्यंगों ने उसके वस्त्रों की सरकार के खिलाफ ज़िहाद छेड़ रखा हो। हमारे कार्यालय के सभी लड़को की भावनाएं उस लड़की को देख कर मृगछौने की तरह कुलांचें मारने लगीं। सभी लोग अपनी-अपनी कुर्सियों से उठ कर उसकी तरफ ऐसी कातर निगाहों से देखने लगे जैसे कि एक भूखा कुत्ता किसी भोजन कर रहे व्यक्ति की तरफ देखता है। वह जिस रूम मे बैठ कर अपना इंटरव्यू दे रही थी उसी तरफ हम लोगों के ऑफिस का टॉयलेट भी था। अब हमारे ऑफिस के सभी लड़को का बारी बारी से उस तरफ जाने का सिलसिला शुरू हो गया। और मैं इस सोच में पड़ गया कि उस सुन्दरी ने अपने मदभरे नयनों से ऐसा कौन सा रस पिलाया है कि इन लोगों का यह सिलसिला थम ही नहीं रहा है। उस लड़की को देखते ही मानव विज्ञान के सारे नियमों को तोड़ कर इन लड़कों की किडनियां भी पुरुष प्रवृति के अनुरूप बेहद अप्रत्याशित ढ़ंग से व्यवहार करने लगीं थी। अब मुझे यह समझ आ रहा था कि हमारे गांव के रामदीन काका अपनी भदेस भाषा मे हमेशा यह क्यों कहते थे कि “औरत जब अपनी पर आती है तो अच्छे-अच्छे का मूत निकाल देती है।“
वह लड़की भी ऑफिस के सभी लड़कों की यह हरकतें देख रही थी। उस समय वह अपने को किसी विश्व सुन्दरी से कम नहीं समझ रही थी। और लड़के यह सोच रहे थे कि काश इसकी शर्ट का एक बटन और खुला होता या फिर जींस ही थोड़ा और लो वेस्ट होती हालांकि उससे ज़्यादा लो वेस्ट का मतलब फिर लो हिप्स हो जाता। अपना इंटरव्यू देकर वह लड़की जब बाहर निकली तब सभी लड़के उसे ऐसी कातर निगाहों से देख रहे थे जैसे कि मन्दिर या सड़को पर भीख मांगने वाले बड़ी-बड़ी कार वालो को कुछ पाने की लालसा में देखा करते हैं। वह लड़की भी जाते जाते उन सभी के अरमानों पर पानी फेरती हुई अपनी निगाहों में ठीक वैसी ही हीनदृष्टि डालती हुई चली गई जैसी कि बड़ी-बड़ी गाड़ी वाले तथाकथित बड़े लोग भिखारियों पर डालते हुए चले जाते हैं।
हमारे देश में हमेशा अक्षमता हीनता का पर्याय रही है और स्त्री देह के आगे तो अच्छे से अच्छा और सक्षम से सक्षम व्यक्ति भी हीन और अक्षम हो जाता है। परंतु अपने ऑफिस के लड़कों का यह हाल देख कर मुझे अनायास ही गोर्की की एक कहानी “26 मेन एंड ए वूमन” याद आ गई जिसमें 26 मजदूर एक पिंजरेनुमा डबलरोटी के कारखाने में काम करते थे। जहां उनकी हालत किसी सुअर से भी बदतर थी। उनके लिए ज़िन्दगी का सबसे सुखद क्षण मात्र वही होता था जब मालिक की जवान लड़की वहां से निकलती थी। वे सभी उसे सींखचों से देखा करते और मन ही मन प्रसन्न हो कर तृप्तता का अनुभव करते। उनके जीवन के रेगिस्तान में इस लड़की के दर्शनों के रूप में ही थोड़ी सी हरियाली आती थी। वे सभी उसे किसी देवी की तरह पूजते थे और मन ही मन वे सभी उस से अलग अलग और इकट्ठे प्यार करते थे। एक दिन जब वह लड़की अपने समवर्गी प्रेमी के साथ बाहर निकलती है तो वे सभी आदतन उसे सींखचों से झांक कर देखते हैं। वह लड़की उनकी तरफ एक नज़र देखती है और कहती है – सुअर कहीं के! और अपने समवर्गी प्रेमी के साथ चली जाती है।
Friday, September 19, 2008
स्त्री और पुरुष
लेखक:- विकास परिहार at 12:05
श्रेणी:- कथायें एवं किस्से, व्यंग्य
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3 comments:
aap sahi kah rhe hai. lekin kuch purush aese bhi hai. jo apni bibi ki parvah tak nahi karte hai. aap mere blog par aaye. likha hai kuch purusho ke bare me.
http://jasvirsaurana.blogspot.com/2008/09/blog-post_18.html
hi really nice subject u posted. jo carntly life me hota wo aapne ward se live kar diya he . jo apni nature me he koe badal nhi sakta ..
ur though very nice..
keep it up...
Aap ka lekh achha hai lekin iska doosra pahloo bhi hai jise shayad abhi tak aapne mahsoos nahi kiya hai. Stree aur purush ka paraspar aakarshan swabhavik hai aur striyan is mamle me pichhe zaroor hain purushon se par achhootee nahi hain.
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