जब से तकनीकि ने अपने पैर पसारे हैं तब से हमारे देश में बीमारियां भी टेक्निकल हो गयी हैं। वर्तमान में ऐसी ही एक बीमारी का पता चला है जिसका कोई इलाज नहीं है और जिसका संक्रमण दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। जी हां मैं ब्लोगोमेनिया की ही बात कर रहा हूं। हालांकि यह बीमारी अभी नयी है परंतु इसके मरीज़ दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहे हैं। यूं तो यह बीमारी एक शौक के रूप में शुरू होती है पर फ़िर धीरे-धीरे अपना विकराल रूप धारण कर लेती है और इससे प्रभवित व्यक्ति को ब्लोग लिखने के सिवा कुछ भी नहीं सूझता। बह दिन-रात बस अपने ब्लोग को लिखने और उसे और अधिक पठनीय बनाने में ही लगा रहता है। इस बीमारी से पीङित व्यक्ति की यह मानसिकता विकसित हो जाती है कि अपने ब्लोग या फ़िर चिट्ठे की मदद से वह अपनी अवाज़ सारी दुनिया में पहुंचा सकता है और वह इसी भ्रम में जीता रहता है। इस बीमारी की सबसे बङी समस्या है इसका इलाज क्यों कि अभी तक इसका इलाज खोजा नहीं जा सका है। वर्तमान मेँ इसके बढते हुये संक्रमण को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यदि शीघ्र ही इसका इलाज ना ढूंढा गया तो यह बीमारी सारे भारत को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपनी गिरफ़्त में ले लेगी। और यदि यहाँ बीमारी इसी रफ्तार से बढती रही तो यह एक अंतर्राष्ट्रिय समस्या का रूप धारण कर लेगी। खासकर उन संगठनो एवं लोगों के लिये जो सच्चाई को दबाने के लिये सदैव तत्पर रहते हैँ।
Sunday, September 23, 2007
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5 comments:
यह बात तो आपको टीवी और अखबार के माध्यम से सेहतमंद लोगों में पहुँचाना चाहिये ताकि वो इस बीमारों की बस्ती की तरफ रुख न करें.
आप तो बीमारों की बस्ती में ही आख्यान दे रहे हैं कि इसका इलाज नहीं है. कितना मनोबल गिरेगा मरीजों का, सोचिये जरा!!
:)
कमाल करते हैं भाईसाब मरीजों से ही इलाज पूछ रहे हैं। बीमार बस्ती से कोई बाहर का डॉक्टर पकड़िए भाई, यहाँ तो ब्लॉगिए बंदे को मीठी-मीठी बातें करके फंसा लेते हैं और वो किसी काम का नहीं रहता। :)
सुना है इस बीमारी का ईलाज है कि अपने कंप्यूटर को फेंक दिया जाय.हम तो इस तलाश में हैं कि कौन कंप्यूटर फैंके और हम ले लें.
काकेश
लीजिये काकेश जी ने तो इलाज भी बता दिया तो अब चिन्ता करने की जरुरत नही है। :)
इलाज शुरू किया जाये। पुराना फ़ेंककर नया लाया जाये ताकि ये रोग तेजी से फ़ैले।
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