मुझको हर इक पल तेरी ज़रूरत है।
तू ना मिली मुझको ये मेरी किस्मत है।
है मुझे यह गम ऐ मेरे हमदम,
सब दिया तुझको, फ़िर भी शिकायत है।
तोङ कर हंसना दिल को दिलबर के,
है मुझे मालूम तेरी आदत है।
अब तलक ख्वाबों में ही जीता था,
आज यह जाना क्या हक़ीकत है।
अब तो जीने की आरज़ू न है,
कब्र मंज़िल है सफ़र मैयत है।
Wednesday, September 12, 2007
तेरी ज़रूरत
लेखक:- विकास परिहार at 23:18
श्रेणी:- गीत एवं गज़ल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment