कल ताशब
इस कदर धुआँ उठा,
कि चाँद काला पड़ गया।
डाल दिया था किसी ने,
लकड़ियों की जगह
दिल अपना चूल्हे में।
Sunday, September 30, 2007
धुआँ
लेखक:-
विकास परिहार
at
15:36
श्रेणी:- क्षणिकाएं एवं अशआर
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