सुना है कुछ अभिनेता पहुंचे हैं न्यूयॉर्क
नहीं! स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी देखने नहीं,
बल्कि भूख के विरोध में,
भूखों का समर्थन करने।
परंतु नहीं सोच पा रहा हूं मैं
कि क्या वो लोग,
जिनके पेट कभी खाली न हुये हों,
जो आदी हों खाने के पांच सितारा होटलों में,
जिन्हें मालूम न हो कि कैसे
पिलाया जाता है बच्चों को
पानी में घोल कर आटा
दूध न होने पर?
कि कैसे सोया जाता है बांध कर पेट
भीगे अंगोछे से?
जो सदैव ही तृप्त रहे हों,
क्या वे जान पायेंगे
क्या होती है अतृप्त पिपासा?
क्या होती है निर्धन होने की पीड़ा?
कैसे चढ़ता है भुखमरी का ज़हर
धीरे-धीरे
ऊपर और ऊपर?
यदि नहीं
तो फिर काहे का प्रदर्शन
भूख के विरोध का
या प्रसिद्धि की भूख का?
Saturday, September 29, 2007
प्रदर्शन का दर्शन
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3 comments:
भाई, उनका नाम असरकारक है. कुछ भला ही होगा. भले ही उन्हें थोड़ी प्रसिद्धि और मिल जाये वरना भूखों की भूख हड़ताल पर आज तक किसकी नजर गई है?
सामयिक रचना… अच्छी प्रस्तुति…।
जी आप की कविता शत प्रतिशत सच्चाई बयां कर रही है। आप बहुत हद तक अपनी बात कहने में सफल रहें, पर कहीं कहीं कविता कुछ गद्य जैसी प्रतीत होती है आगे आप इसका जरूर ध्यान दीजिये तो और भी सुन्दर कृति प्रस्तुत कर सकेंगें।
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